अनेक आस्तिक लोग अपनी बीमारी में भी ईश्वर की सदिच्छा और कोई वृहत्तर निमित्त ढूंढते हैं। इसमें गलत क्या है? उन्हें लगता है कि इन लकवे ने उन्हें एक बेहतर और अधिक मजबूत व्यक्ति बनने का मौका दिया है। चिकित्सकों व फिजियोथेरापी विशेषज्ञों के लिये जरूरी है कि वे पुनर्वास की इन सुदीर्घ गाथाओं से रूबरू हों। इन नायकों की कहानियों से परिचित हों। उन्हें मालूम हो कि इस तंत्र के पूर्जेके रूप में वे कई बार मरीजों के प्रति तिरस्कार, उपेक्षा व निराशा को जो रूख अख्तियार करते हैं उसका एक एक क्षण मरीजों को चुभता है, सलता है, क्षोभ से भरता है।
विकलांगों में किये गये एक सर्वे में उभर कर आया था कि वे लकवा ग्रस्त मरीज अपने चिकित्सकों से सबसे अधिक दरकार रखते हैं, एक छोटी सी चीज पर है बहुत बड़ी हमें सुनो, हमारी सुनो।
कनाडा की बोनी शर क्लीन की कहानी
कनाडा की बोनी शर क्लीन को सर्वांगघात हुआ था। चारों हाथ पांव चलना बन्द हो गये थे। तीन वर्ष बाद सहारे से चलना शुरू हुआ। उसने अपनी कहानी को किताब के रूप में, पेंटिंग द्वारा और एक फिल्म के माध्यम से बयान किया। दूसरे विकलांगों को इकट्ठा किया। इन्टरनेट और मोबाईल के जमाने में इकट्ठा करना आसान है। विकलांगों की कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाना शुरू की। बोनी लिखती है लकवा की इस बीमारी ने मुझे मौका दिया कि मैं एक नयी जात के लोगों से परिचय प्राप्त करू, मित्र बनाऊं, आत्मीयता विकसित करूं। लकवे की जात। विकलांग की जात। एक नया फ्रेंड सर्कल। एक नया दायरा। ऐसा समुदाय जिसमें मेरी जीवन यात्रा में टकराने की मैंने पहले कभी कल्पना भी न थी। मौका कभी आता भी होगा तो उसे टाल देती थी, कन्नी काट लेती थी। इस विकलांगता ने मुझे सिखाया है कि परिपूर्णता की कल्पना एक धोखा है, माया है। हमारी कमियों को कमी नहीं, भिन्नता कहिये। बहुलता और भिन्नता में बहुत अमीरी है। सम्पूर्णता और एकरसता में गरीबी है। जिन्दगी के केनवास पर विकलांगता भी अनेकता के रंगों में एक है।
निश्चय ही, विकलांगों का यह अधिकार बनता है कि उन्हें शेष समाज का समान्य अंग (पर थोड़ा भिन्न) माना जावे। लेकिन इससे भी अधिक वे समाज की विविधता में नये रंग जोड़कर उसे अधिक सम्पन्न और अर्थवान बनाते हैं। विकलांग यह सन्देश देते हैं कि पर निर्भरता के लिये शर्मिन्दा होने की जरूरत नहीं। जब वे मदद मांगते हैं तो दूसरे सबल लोगों पर उपकार करते हैं, उन्हें मौका देते हैं जिन्दगी के गहरे और व्यापक अर्थ में बेहतर इन्सान बनने का। कौन एक दूसरे पर आश्रित नहीं है? कोई कम और कोई अधिक। कोई इस रूप में, कोई उस रूप में। हम अकेले आश्रित नहीं हैं। डाक्टर्स भी अन्तरनिर्भरता का इस लड़ी का हिस्सा हैं।
यह पत्रिका क्या संदेश देना चाहती है?
सर्वप्रथम अपने रोग के बारे में जानो। दूजे यह मंजूर करो कि अपनी मेहनत व लगन के अलावा किसी चमत्कार पर भरोसा करना सबसे बड़ा धोखा है। तीसरे अपने जैसे भुक्तभोगियों के साथ समूह बनाओ, दोस्ती करो, साझा करो, मदद करो।
चौथा अपने अधिकारों व सुविधाओं के लिये मिलकर आवाज उठाओ। दुनिया को फुरसत नहीं है। उसे नहीं मालूम स्पाईनल इन्ज्यूरी क्या होती है। आप सब मिलकर उन्हें मालूम करवाओ। अपने होने की खबर फैलाओ। पांचवा अपने डाक्टर को शिक्षित करो। आपके शरीर के बारे में आप से अधिक कौन जान सकता है? आप उसके मालिक हैं। डाक्टर्स का बहुत कम पता होता है। वे केवल अनुमान लगाते हैं। अंधेरे में तीर चलाते हैं। जब आप अपनी तकलीफों, भावनाओं, अनुभूतियों, उम्मीदों और सुझावों का डाक्टर के साथ साझा करते हैं तो उसे आप वे पाठ पढ़ा रहे होते हैं जो उसने किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं पढ़े और न कभी पढ़ सकेगा।
यदि ईश्वर ने आपको भाषा दी है तो उसका उपयोग करो। अपनी आप बीती को लिख डालो। डायरी लिखो। रोजमर्रा के उत्तार चढ़ाव और उहापोह को बयान करो। अंग्रेजी व अन्य पश्चिमी भाषाओं में मेडिकल त्रासदी को व्यक्तिगत कहानियों पर आधारित साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इन्हें पढ़कर धुप अंधेरे में रोशनी की किरणों का अहसास होता है। संवेदना, सहानुभूति, हमदर्दी, विस्मय, भरोसा, उम्मीद आदि मानसिकताओं से रूबरू होना होता है। आशा से आकाश थमा है। आशा ही आपको हर अगले लक्ष्य की ओर प्रेरित करती है।
ऐसा साहित्य हिन्दी और भारतीय भाषाओं में बहुत कम है। कुछ लघु अनुभय लिखे गये हैं। जरुरत है कुछ बड़ी कहानियों को संग्रह कर के एक पुस्तक प्रकाशित करने की। कांटों भरी इस राह पर मरीज अकेला नहीं चल सकता। उसके परिजनों का साथ होना जरूरी है। मित्रों का साथ अनिवार्य है। उन्हें भी इस सब ज्ञान व समझ की जरूरत है जिसे स्वास्थ्य साहित्य द्वारा अलग-अलग बीमारियों के सन्दर्भ में देने की कोशिश करते रहे हैं। इस निकटस्थ दायरे से बाहर, बाकी बड़ी दुनिया में भी लोग हैं जो पढ़ते हैं, दयावान है, विचारवान हैं, उनके घर में रोग नहीं फिर भी पढ़ते हैं। पढ़कर मदद करने की भावना रखते हैं। उन सबको समर्पित हमारा प्रत्येक लेखन।
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