घनश्याम दूध वाले का धंधा अच्छा चलता था। मदनपुर के अनेक मोहल्लों और आसपास के गांव का चप्पा चप्पा मोटर बाइक पर घूमना और दूध बांटना था। गोरा चिट्टा गोल चेहरा, घुंघराले बाल, चमकीली आंखें, घनी मूँछे, गठीला कसरती बदन, मुख पर सदा मुस्कान रहती थी। उसके ग्राहक, ग्राहक कम दोस्त ज्यादा थे। खूब हंसी मजाक करता था। 20 वर्ष की उम्र […]
यह खंड हैं : मरीज़ कथाएँ
जानूँ कि न जानूँ
62 बरस की जानकी बाई घूंघट में अपने साथ में पति, जेठ और सास के साथ आई थी। जेठ ने बात शुरू की ।“सर! ये दिमाग का एम.आर.आई. कराया है इसे देखो|” “इसे मैं पांच मिनिट बाद देखूंगा। क्या तकलीफ है जानकी देवी। ये घूंघट हटा लीजिए।” जेठ और पति को पीछे हटना पड़ा। बड़ी मुश्किल से आधा घूंघट […]
चाबी भरा खिलौना
चटखारे / (स्वचलन /ऑटोमेटिज्म) छुट्टी के दिन माँ के बनाए पकौड़ों की खुशबू से घर महक उठा था। सब छक कर खा रहे थे। अँगुलियाँ चाट रहे थे। विनय माँ का खास लाड़ला था। सातवी की परीक्षा में कक्षा में प्रथम आया था। स्कूल की कबड्डी टीम का कप्तान था। सप्ताह के शेष दिनों में […]
भूत पांव
सुदर्शन, 66 वर्ष ने जब मेरे चैम्बर में प्रवेश करा तो उसकी चाल में थोड़ी सी लचक थी । मैंने उसे अपनी कहानी सुनाने को कहा।‘सर मेरे बाये पांव में दर्द है। घुटने के नीचे।” ड़ अप; को कहा ।‘‘पूरी बात बताओ’ सुदर्शन ये रिहर्सल कई बार कर चुका था| उसने बिना मेरे प्रश्नों के […]
डॉक्टर मरीज़ संवाद – रोग की कहानी जानने की कला
डॉक्टर्स का माइंड कैसे काम करता है?एम. वाय. अस्पताल की मेरी न्युरोलोजी ओपीडी में बहुत भीड़ रहने लगी थी, इसलिये सप्ताह मे एक अतिरिक्त दिन मैंने हेडेक क्लिनिक शुरु की थी, जिसमें केवल सिर दर्द के मरीज़ देखे जाते थे । सिर दर्द बहुतायत से देखे जाने वाली अवस्था है । अधिकांश मामलों में रोग […]
पैसा पैसा पैसा
श्रीचंद्रजी अग्रवाल की माणकचौक में मिठाई की पुरातन दुकान थी। उनकी बड़ी साख थी। ऊंची दुकान, ऊंचा पकवान | दाम एक दम सही| माल पूरा शुद्ध । सबको मिठाई खिलाते थे / स्वयं नहीं खाते थे। नियम संयम से रहने वाले | कोई लत या एब नहीं । रोज एक घंटा तेज गति से चलने और आधा घण्टा योग | संगीत का शौक […]
लड़की आँख मारे
प्रथम वर्ष की छात्रा विभा की ख्याति, कालेज में जल्दी फैल गई थी। बेहद सुन्दर थी, अमीर घराने की थी, एक से एक उम्दा कपड़े पहनती, ड्रेसिंग सेन्स गजब का था। मोटर सायकल पर आती थी। अंग्रेजी पर गजब का अधिकार था।प्रोफेसर साहब से उन्हीं के बौद्धिक स्तर पर चर्चा करती थी। डिबेट में फर्राटेदार इंग्लिश बोलती जो आधों […]
अरे कोई सुनो, मै बेहोश नही हूँ !
पंद्रह दिन के अवकाश के बाद मैं वार्ड में राउण्ड लेने पहुँचा। जूनियर डॉक्टर्स (रेसीडेण्ट्स) एक के बाद मरीजों के बारे में बता रहे थे। “सर, 26 वर्षीय कपिल, मस्तिष्क ज्वर (एनसेफेलाईटिस) के कारण 40 दिन पहले भर्ती हुआ था। अभी भी होश में नहीं आया है।मैंने पूछा कि “अचेतन अवस्था की गहराई या तीव्रता नापने की ग्लास्गो […]
अंदर कोई है क्या ?
मूल कहानी “अंदर कोई है क्या?” का अंग्रेजी में अनुवाद “Dadi” इसी कहानी के अंत में दिया गया है । आज शीला देवी का साठवां जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा था। दस वर्ष का अनुपम अपने मॉ-पापा के साथ अमेरिका से आया था, चार साल के लम्बे अन्तराल के बाद। वह दादी को ध्यान से […]
मरीज़ कथाएँ
मरीज कथाए या क्लिनिकल टेल्स, साहित्य की एक विशिष्ठ विधा है । जिसमें एक या अधिक रोगों के साथ जिंदगी गुजारने वालों की दास्ता बयां होती है । यूँ तो पुरे विश्व साहित्य में किसी न किसी पात्र में, कहानी के किसी न किसी दौर में, कोई न कोई बिमारी का उल्लेख आ सकता है । ये रोग गंभीर, जानलेवा, पीडा दायक […]
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