“मुझे लगता हैं कि मन एक रहस्यलोक हैं| उसमें अँधेरा हैं| अँधेरे में सीढ़िया हैं| सीढियाँ गीली हैं| सबसे निचली सीढि पानी में डूबी हैं| वहाँ अथाह काला जल हैं| इस अथाह काले जल से स्वयं को ही डर लगता हैं| वह शायद मै ही हूँ|”
मुक्तिबोध
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