किसी एक रोगी या मिलती -जुलती स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त कुछ व्यक्ति और उनके परिजनों तथा हितैषियों का समूह, जब एक दूसरे की तथा अपने जैसे अन्य मरीजों की बेहतरी और मदद के लिये मिलकर काम करने लगे तथा अपने अनुभवों का साझा करने लगे तो उस गतिविधि को सेल्फ हेल्प तथा सपोर्ट समूह कहा जाता है ।
- उद्देश्य
- स्थापना की शुरुआत
- सम्भावित सदस्यों को ढूंढना और सुची बनाना
- गतिविधियाँ
- नेतृत्व
- स्वयंसेवक
- शासकीय प्रोत्साहन
अनेक विकसित राष्ट्रों में सैंकड़ों बीमारियों पर आधारित ऐसे स्वयं सहायता समूह पहले से काम कर रहे हैं । ये बीमारियाँ बहुतायात से व्याप्त या आम किस्म की हो सकती हैं । या फिर अत्यन्त दुर्लभ या कम पाई जाने वाली भी हो सकती हैं ।
कुछ बड़े शहरों में पेशेन्ट सपोर्ट ग्रुप्स ने विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और संचार के क्षेत्र में स्वयं के हितों की खातिर काम शुरु किया है । ये समूह नेतृत्व, पैरवी, सामाजिक सक्रियता, सहकारिता व सूचना के प्रसार जैसी गतिविधियों द्वारा अपने लक्ष्यों को पाने की कोशिश कर रहे हैं ।
उपरोक्त उल्लेखित प्रवृत्तियों को मजबूत और त्वरित करने की जरूरत है । ये काम बहुत पहले ही शुरु हो जाना चाहिये थे । समस्त और प्रत्येक बीमारी को आधार बना कर गठित मरीज सहायता समूह अनेक विकसित देशों में पिछले कुछ दशकों से अच्छा काम कर रहे हैं तथा मरीजों व परिजनों की जिन्दगी बेहतर बनाने में महती योगदान देते रहे हैं ।
उद्देश्य
>>अपने समूह के सदस्यों को अवसर प्रदान करना कि वे उन लोगों से बात कर सकें जो उस रोग/ अवस्था से जुड़ी हुई तकलीफों और भावनाओं को अच्छे से समझते हों ।
>>महसूस करें कि इस दुनिया में वे अकेले नहीं हैं उनके जैसे और भी लोग हैं । नयी मित्रता और संबंध विकसित कर सकें ।
>>अपनी बीमारी के बारे में सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक समझ को बढ़ा सकें ।
>>रोग अवस्था से जूझने और उसके साथ जीने के तरीके सीख सकें ।
>>अधिक आत्मनिर्भर हों व घर के सदस्यों पर बोझ नहीं बनें ।
>>एक बेहतर जिन्दगी जी सकें ।
>>एक भावनात्मक और सामाजिक सहारा पा सकें ।>>अपनी बीमारी और स्वास्थ्य संबंधी स्थिति के बारे में दूसरों से खुलकर बिना झिझक बातचीत कर सकें ।
स्थापना की शुरुआत
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता । लेकिन शुरुआत तो किसी एक या थोड़े से लोगों द्वारा ही होती है । धीरे – धीरे लोग जुड़ते जाते हैं , टीम बड़ी होती है कारवां बढ़ जाता है । प्राय: इसका प्रोत्साहन चिकित्सकों और विशेषज्ञों की तरफ से मिलता है । किसी एक नगर या राज्य या राष्ट्र में पहले से कार्यरत संगठन अन्य नगरों में इसकी शाखाओं की स्थापना में मदद करते हैं ।
सम्भावित सदस्यों को ढूंढना और सुची बनाना
हमें पता नहीं होता कि हमारे जैसे और कितने सारे मरीज हैं । वे हमारे बीच है । हम उन्हें नहीं जानते । वे सामान्य जिन्दगी जी रहे प्रतीत होते हैं । किसी के चेहने पर बीमारी का नाम लिखा होना जरूरी नहीं । बहुत सी बीमारियों के साथ जुड़ी भ्रांतियाँ व नकारात्मक धारणाओं के कारण मरीज अपना रोग छिपाते हैं । स्वीकार नहीं करते | खुलकर सामने नहीं आते, अखबार में तथा स्थानीय रेडियो व केबल टी.वी. चैनलों पर समाचार या विज्ञापन दे सकते हैं । अस्पतालों और डाक्टर्स के क्लिनिक में इश्तेहार चिपकवाएं जा सकते हैं । अनेक अस्पताल व चिकित्सक अपने मेडिकल रिकार्ड में से मरीजों के नाम व पते मुहैया करा सकते हैं । मरीजों को पता चलता रहता है कि उनके जैसे और भी रोगी हैं । मुँह जुबानी बात फैलाई जाती है ।
गतिविधियाँ
>>अपने सदस्यों की सूची बढ़ाते जाना तथा सम्पर्क की जानकारी (पता, फोन, ई-मेल को अप-टू-डेट) रखना ।
>>सदस्यों के साथ जीवन्त सम्पर्क बनाए रखना ।
>>नियमित समय पर सूचना भेज कर मीटिंग आयोजित करना | बैठक में उपस्थिति बढ़ाने के लिये द्वारा याद दिलाना | मीटिंग का कार्यक्रम उपयोगी व मनोरंजक बनाना ।
>>बीमारी के बारे में ज्ञान बढ़ाने हेतु उपाय करना । विद्वान वक्ता को बुलाना । किसी सदस्य ने किसी पत्रिका में जानकारी पढ़ी हो तो सबके सामने सुनाना ।
>>अपनी मिटिंग व बाद मे उसकी सूचना व चित्र आदि समाचार पत्रों में छपवाना ।
>>आपसी सम्पर्क, ज्ञानवर्धक, मरीज कथाओं, संगठनात्मक व सामाजिक समाचारों की जानकारी का प्रसार करने के लिये न्यूजलेटर (समाचार पत्रक) का प्रकाशन करना ।
>>पिकनिक का आयोजन करना |
>>रंगारंग मनोरंजक कार्यक्रम करवाना जिसमें सदस्य व उनके परिवारजनों द्वारा प्रस्तुतियाँ दी जावें ।
>>बीमारी के कारण नौकरी आदि में भेदभाव के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाना । वक्तव्य जारी करना । याचिका दायर करना |
>>समाज में बीमारी के कारण लोग नीची नजर से न देखें, इस उद्देश्य से जनशिक्षा अभियान चलाना ।
>>सदस्यों को प्रेरित करना कि वे सार्वजनिक मंच व संचार माध्यमों में इस बात की घोषणा करें कि उन्हें फलां रोग है तथा वे अपना जीवन कैसे व्यतीत कर रहे हैं । दूसरे मरीजों के लिये यह सर्वाधिक प्रेरणादायी होता है ।
>>अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये आर्थिक साधन जुटाना |
नेतृत्व
आप क्यों नहीं ? आप इस वक्त ,इस पल यह लेख पढ़ रहे हैं । या आपकी जानकारी में कोई अन्य व्यक्ति । बेहतर नेतृत्व वह होगा जिसे स्वयं को सम्बन्धित रोग हो या उसके किसी आत्मीय परिजन को हो । जिसने बीमारी की पीड़ा, दु:ख, लांछन आदि को व्यक्तिगत रूप से गहराई से महसूस किया हो । जिसने अपनी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के बूते पर, रोग के बावजूद जीवन में आगे बढ़ना जारी रखा हो , सफलताएं पाई हों । जिसके मन में अपने जैसे भुक्त भोगियों के लिये कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो। जिसे इस बात में भरोसां हो कि मिलजुल कर काम करने से स्वयं का तथा अपने जैसे और लोगों का भला हो सकता है । जो शिक्षित व सामर्थ्यवान हो हालांकि इसकी परिभाषा व कसौटी परिवर्तनशील है ।
स्वयंसेवक
नेता की भी और स्वयं सेवकों की भी जरूरत है । बीमारियों से लेकर सहायता समूह बनाना, उन्हें संचालित करना, आज अपने समाज की बड़ी आवश्यकता है । जाति, धर्म आदि पर बहुत संगठन और सोश्यल ग्रुप हमने बना लिये अब कुछ नया करें जो कहीं अधिक सार्थक हो ।
शासकीय प्रोत्साहन
राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर शासन नीति बनाएं कि विभिन्न बीमारियों पर आधारित मरीज सहायता समूहों को प्रोत्साहन व मदद दी जावेगी | इनके पंजीकरण के सरल नियम बनाये जावें | इन समूहों को सामुदायिक व सहकारिता आन्दोलन का भाग मान कर तत्सम्बन्धी अधिकार, सुविधाएं व अनुदान प्रदान किये जावें । एक राष्ट्रीय रजिस्टर व वेबसाईट पर समस्त सहायता समूहों की जानकारी उपलब्ध हो ताकि अन्य नागरिक व उनके समूह प्रेरणा व सीख पा सकें ।