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अफेज़िया के उपचार में वाणी चिकित्सा की भूमिका


वाणी-भाषा चिकित्सा(SLT) या लोकप्रिय रूप से कहें तो “स्पीच थेरेपी” स्वास्थ्य सेवाओं की एक ख़ास व महत्वपूर्ण सहायक शाखा हैं  |

इस थेरापी को देने वाले विशेषज्ञ “वाणी-भाषा पेथालाजिस्ट”/SLP/स्पीच थेरापिस्ट कहलाते हैं |

भारत में वर्तमान समय में वाचाघात के मरीजों की संख्या की तुलना में वाणी चिकित्सकों की संख्या काफी कम हैं | अनेक SLP को अमेरिका में जॉब मिल जाता हैं |

विषय सूचि

स्पीच लैंग्वेज पेथालाजी

(SLP) कोर्स की पढ़ाई में दाखिला लेने के लिये कक्षा 12 के बाद कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेना पड़ता हैं | BASLP या BSC SLP की डिग्री 3 वर्ष में मिलती हैं | मास्टर्स डिग्री MASLP का कोर्स 2 वर्ष का होता हैं | दो प्रमुख धाराएं होती हैं –

  • आडियोलाजी-श्रवणविज्ञान – सुनने की क्षमता का आकलन, बहरापन, हियरिंग ऐड, काक्लिया ट्रांसप्लांट आदि
  • स्पीच लैंग्वेज – वाणी भाषा

स्पीच लैंग्वेज पेथालाजिस्ट(SLP) के अनेक काम होते हैं –

  1. निदान/ Diagnose
  2. उपचार/ Therapy
  3. पुनर्वास/ Rehabilitation
  1. निदान(Diagnose):-

निम्न प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये मरीज़ का विस्तृत परिक्षण करते हैं –

  • किसी मरीज़ में बोली-भाषा-संवाद(Speech Language Communication) में खराबी हैं या नहीं?
  • उसका स्वरुप या प्रकार कैसा हैं ?
  • उसकी खराबी की तीव्रता कितनी हैं ?
  • क्या उक्त खराबी या कमी का स्वरुप किसी पूर्व परिभाषित सिंड्रोम/रोग से मेल खाता हैं ?
  • उक्त अवस्था में कौन कौन से पह्लू प्रभावित हुए हैं – जैसे कि

            *ध्वनियाँ, *शब्दावली, *शब्द व अर्थ का ज्ञान, *व्याकरण के नियम, *लम्बा कथोपकथन बोलने की क्षमता, *एक या अधिक लोगों के बीच बारी बारी से बातचीत में शरीक होना, *नामकरण करना

            स्पीच थेरापी करते समय मरीज़ की भाषा-संवाद संबंधी क्षमताओं के साथ साथ कुछ अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया   जाता हैं –

  1. अन्य बौद्धिक क्षमताएं – इंटेलिजेंस, स्मृति, स्थान-दृश्य बोध, कार्य-फलीभूत क्षमता, एकाग्रता
  2. भावनात्मक अवस्था(Emotions)
  3. सामाजिक अवस्था – घर, परिवार का सहारा और आर्थिक हालत
  4. शैक्षणिक योग्यता
  5. न्यूरोलॉजिकल विकलांगता

            शुरू शुरू की एक-दो विज़िट में SLP मरीज़ से खूब बातें करने की कोशिश करते हैं | अफेज़िया का क्लिनिकल परिक्षण             एक बैठक में पूरा नहीं हो पाता | अनेक बातों पर गौर करते हैं | मरीज़ की क्षमता-अक्षमता के विभिन्न पहलुओं पर नंबर             देते हैं, एक प्रोफार्मा में दर्ज करते जाते हैं | अनेक प्रकार के कार्ड्स का उपयोग होता हैं जिन पर तरह तरह के चित्र बने             होते हैं, अक्षर-शब्द या छोटे वाक्य लिखे होते हैं | इन कार्ड्स को दिखा कर मरीज़ से ढेर सारे सवाल पूछते हैं | ऐसे             बचकाने सवाल जिन पर हंसी आवे| लेकिन अफेज़िया के मरीजों को दिक्कत आती हैं | कार्ड्स का डिजिटल स्वरूप  आजकल लेपटॉप, टेबलेट व स्मार्टफोन पर भी उपलब्ध हैं |

उपरोक्त विस्तृत आकलन के आधार पर मरीज़ के अफेज़िया का प्रकार (Type or Syndrome) तथा उनकी तीव्रता का डायग्नोसिस करते हैं |

क्लिनिकल परिक्षण के मुख्य अंग होते हैं –

बोलकर कह पाने की क्षमता – Verbal Fluency:

मरीज़ कितना अटकता हैं ? कितने शब्द बोल पाता हैं ? कितने लम्बे वाक्य बना पाता हैं ? जो शब्द चाहिए वह जुबान पर आता हैं या नहीं आता हैं या उसकी जगह कोई मिलता जुलता या ना मिलता जुलता शब्द आ जाता हैं  या ऐसा अन-शब्द प्रयुक्त होता हैं जो भाषा में होता ही नहीं ? वाक्य विन्यास कैसा हैं? व्याकरण में क्या गलतियाँ होती हैं? उच्चारण कैसा हैं ? सामने सुनने वाले को समझ में आता हैं या नहीं? कुछ मरीजों की बोली , प्रथम दृष्टया धारा प्रवाह प्रतीत होती हैं लेकिन ध्यान से सुनो तो  सब कुछ गड्डमड्ड, प्रलाप जैसा, न कोई सिर न कोई पैर, बुझों तो जाने |

सुनकर समझपाने की क्षमता – Auditory Comprehension:

वाचाघात में आवक और जावक दोनों प्रभावित होते हैं | Input और Output दोनों | आवक या Input में खराबी के कारण मरीज़ सुनकर भी समझ नहीं पाता कि उसे क्या कहा जा रहा हैं | आसपास लोग बाते कर रहे हो तो वह चर्चा में शरीक नहीं हो पाता | उसे एक अर्थहीन शोर जैसा सुनाई पड़ता हैं | कुछ मरीज़ कान के डॉक्टर के पास पहुचते हैं लेकिन बहरापन नहीं होता |

दुहराव-Repetition :  

SLP मरीज़ से कहता हैं – मेरे पीछे दोहराओं | अनेक सरल व कठिन, लघु और लम्बे शब्दों व वाक्यों को चुना जाता हैं | Aphasia के कुछ प्रकारों में दुहराव प्रभावित होता हैं तो कुछ में नहीं | Syndrome की डायग्नोसिस में मदद मिलती हैं |

नामन/नामकरण/Naming

मरीज़ के मुंह से अनेक वस्तुओं, चित्रों, व्यक्तियों, शरीर अंगो के नाम बुलवायें जाते हैं | अटकने पर मदद करते हैं | हिंट देते हैं | उक्त शब्द की प्रथम व द्वितीय ध्वनि बोलते हैं | शब्द के अर्थ को घुमा फिरा कर बताते हैं | गौर करते हैं कि गलत विकल्प अस्वीकार किया जा रहा हैं तथा सही विकल्प स्वीकार किया जा रहा है या नहीं |

पढ़ना: बोलकर पढ़ना, पढ़कर समझना

लिखना: नकल करना, सुनकर लिखना(डिक्टेशन), मन से लिखना

कुछ बीमारियाँ जिनमें बोलने में दिक्कतें आ सकती हैं और जिनमें वाणी चिकित्सक की सहायता से मदद मिल सकती हैं :-

  • जन्म के समय बच्चों में हुआ दिमाग का लकवा(सेरिब्रल पाल्सी)
  • जन्म के दौरान या बाद में सिर में लगी गंभीर चोट या संक्रमण(जैसे मेनिन्जाईटिस)
  • अनुवांशिक बिमारियों जिनमें बुद्धि की कमी आ जाती हैं (जैसे ओटिस्म, डाउन सिंड्रोम आदि)
  • जन्मजात कटे हुए होंठ के कारण सही बोलने में दिक्कतें
  • सुनने में आ रही दिक्कतें के कारण बोलने की कमी
  • विशेष भाषा संबंधी दोष(स्पेसिफिक लेंग्वेज इम्पेयरमेंट)
  • गले में हुई गांठ/संक्रमण के कारण की गई सर्जरी के बाद आने वाली आवाज़ संबंधी परेशानियाँ
  • प्रग्रामी न्यूरोलॉजिकल रोग जैसे अल्जाईमर, डिमेंशिया(बुद्धिक्षय, मोटर न्यूरॉन रोग, पार्किन्सन आदि जिसमें आवाज़ में भी दिक्कतें आने लगाती हैं |
  • मानसिक अवसाद तथा सायकोसिस के कारण आने वाली बोली में दिक्कतें
  • बोलने में आ रही दिक्कतें, शब्दों के उच्चारण में दिक्कतें, तुतलाहट, हकलापन

स्पीच थेरापी के अंतर्गत वैज्ञानिक रूप से तैयार किये गए अभ्यासों से वाणी चिकित्सक बोली, आवाज़, एवं भाषा संबंधी दिक्कतों को निदान एवं उपचार करते हैं |

वैज्ञानिक साक्ष्य में आ रही परेशानियों को पूर्ण व गहन परिक्षण किया जाता हैं | इन परीक्षणों के आधार पर अभ्यासों की सूचि तैयार की जाती हैं | एक ही समस्या से जूझ रहे कई व्यक्तियों में भी अभ्यास एक ही तरह के नहीं होते हैं | प्रत्येक व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग अभ्यास हो सकते हैं |

वाणी चिकित्सा(स्पीच थेरापी) | SLT

वाणी चिकित्सा समय मांगती हैं | खूब लम्बी चलती हैं | अनेक सप्ताहों तक प्रतिदिन, घंटों अभ्यास करने और करवाने पड़ते हैं | असर जल्दी नजर नहीं आता | देर लगती हैं | धेर्य रखना पड़ता हैं | मरीज़ और घर वाले थक जाते हैं | निराश  हो जाते हैं | घर और काम धंधा छोड़ कर थेरापी करवाने जाना मुश्किल पड़ता हैं |  बार – बार फ़ीस देने की क्षमता नहीं होती | लोग तुरंत चमत्कार की उम्मीद करते हैं, जो संभव नहीं हैं |

लेकिन मेहनत का फल मीठा होता हैं | धेर्य व लगन के परिणाम मिलते हैं | जैसे हम बालों या नाख़ून का बढ़ना रोज़ रोज़ नहीं देख सकते वैसे ही स्पीच थेरापी के कारण होने वाले सुधार प्रतिदिन नजर नहीं आते, लेकिन कुछ सप्ताहों बाद तुलना करें तो निश्चित फर्क आता हैं | ऐसा फर्क जो मरीज़ व परिजनों के दैनिक जीवन में संवाद हेतु मायने रखता हो |

उपरोक्त परीक्षणों के आधार पर वाणी-चिकित्सा की योजना बनाते हैं | इसे  

 (i)Impairement Based Therapy कहते हैं | भाषागत क्षमता में जो जो कमियां (Impairement) पहचानी गई हैं – उन पर अभ्यास करवाते हैं |

इसी के साथ-साथ Speech Therapy की एक और विधी हैं – जो समानांतर चलती हैं –

(ii) Life Participation Approach in Aphasia (LPAA), जीवन भागीदारी मार्ग

तरह तरह की कमियों(Impairement) पर ध्यान देने के साथ साथ मरीज़ व घरवालों को प्रोत्साहित व निर्देशित करते हैं कि वाचाघात के बावज़ूद व्यक्ति को दैनदिन की गतिविधियों में बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए | जैसे भी बने, जितना भी बने, करो, लिख लिख कर समझाओं, लिख लिख कर अभिव्यक्त करने को कहो, चित्रों का उपयोग कर, तरह तरह के Indor और Outdoor गेम्स खिलवाओं |

मरीज़ के मन से हीनभावना, शर्म, झिझक, उदासी, अकेलापन, निराशा, आदि को कम करना हैं | मरीज़ को जगह जगह ले जाओं | मंदिर, बाजार,सिनेमा, बगीचा, पार्टी, विवाह समारोह-सब जगह |

(iii) Communication Partner Training – संवाद साथी प्रशिक्षण

वाणीचिकित्सक घर वालों तथा मरीज़ के संपर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों की अनेक कक्षाएं लेता है कि अफेज़िया के मरीज़ से कैसे संवाद करना | इस कार्य को Communication Partner Training संवाद-साथी-प्रशिक्षण(CPT) कहते हैं | (देखियें एक पृथक ब्रोशर)

(iv) कुछ मरीजों में म्यूजिक-थेरापी(संगीत चिकित्सा) कारगर होती हैं – विशेषकर उनमें, जो पहले से संगीत में, कुछ रूचि व दखल रखते हैं |

(v) उच्च शिक्षा प्राप्त मरीज़ जो दैनिक जीवन में लिखने-पढने का काम खूब करते थे उनकी थेरापी में मौखिक क्षमता को बढ़ावा देने के लिये पढ़कर समझने और लिखकर अभिव्यक्त करने के अभ्यास कारगर पायें गयें हैं |

(vi) एक से अधिक भाषाओ में निष्णात मरीजों में पाया गया हैं कि किसी एक भाषा में दी गई वाणी चिकित्सा का थोड़ा फायदा दूसरी भाषा में भी मिलता हैं |          कुल मिलाकर  बहुभाषी मरीजों में सुधार बेहतर होता हैं |

पुनर्वास – Rehabilitation:

मरीज़ का पुनर्वास (Rehabilitation) एक SLP की जिम्मेदारी हैं जिसमें फिजियोथेरेपिस्ट, ओक्युपेशन थेरापिस्ट और सायकोलोजिस्ट को एक टीम के रूप में कार्य करना होता हैं |

दुर्भाग्य की बात हैं कि मरीज़, उसके परिजन, डॉक्टर्स और वाणीचिकित्सक, सब के सब, इस बात की तरफ गौर करना भूल जाते हैं कि मरीज़ जितना भी ठीक हो पाया हैं, उस क्षमता के आधार पर अब क्या क्या कर सकता हैं |

जब मैं पूछता हूँ – इनकी दिनचर्या क्या हैं? उत्तर सुन कर दुःख होता हैं |

“क्या कर सकते हैं?” “घर में पड़े रहते हैं”, टी.वी. देखते रहते हैं” |

मरीज़ का अकेलापन बहुत बुरी बात हैं | उससे कुछ काम करवाओं | अनेक मरीज़ इस काबिल हो चुके होते हैं फिर भी निष्क्रिय पड़े रहते हैं | पुरानी नौकरी-धंधे पर लौटने के उपाय करने चाहिए |

नियोक्ता(Employer) के सम्मुख पैरवी करनी पड़ती हैं | हमारे देश का कानून मरीज़ की विकलांगता के बावज़ूद उसे काम करने का हक़ प्रदान करता हैं | पहले जैसा न सही, थोड़ा कम भी चलता हैं | पुराना जॉब न सही, नया सरल किस्म का काम करवाया जा सकता हैं | नये जॉब की ट्रेंनिंग दी जा सकती हैं  | काम करना अपने आप में सबसे बड़ी थेरापी हैं |

AAC  Augmentative and Assistive Communication (संवाद की सहायक विधियाँ)

स्पीच थेरापिस्ट की जिम्मेदारी होती हैं कि वह मरीज़ और घर वालों को AAC उपायों के बारे में जानकारी देवे, उपलब्ध करवाए और उनके उपयोग की ट्रेंनिंग देवे |

संवाद पटल Communication Board या संवाद डायरी

  • संवाद पटल पहले से बने हुए हो सकते हैं या प्रत्येक मरीज़ की जरुरत व घर के वातावरण के आधार पर विकसित हो सकते हैं | एक से अधिक प्रकार के संवाद पटल हो सकते हैं, जैसे कि विभिन्न थीम या विषय पर आधारित | ये परिवर्तनशील हैं | इनका उपयोग मरीज़ व देखभालकर्ता मिलजुलकर करते हैं |
  • कम्युनिकेशन बोर्ड का उपयोग करने की प्रेक्टिस करना होती हैं |
  • मरीज़ जो कहना चाहता हैं – उसे संवाद पटल पर बने हुए चित्रों पर ऊँगली रखकर दर्शा सकता हैं,

या

विभिन्न अक्षरों या शब्दों पर ऊँगली रख कर इंगित कर सकता हैं |

  • अफेज़िया के अनेक मरीज़ सुनकर भी समझ नहीं पाते हैं | देखभालकर्ता भी उपरोक्त दोनों प्रकार की विधियों द्वारा मरीज़ से कुछ पूछ सकते हैं या कह सकते हैं |

आधुनिक टेक्नोलॉजी की बदौलत अनेक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आजकल उपलब्ध हैं जो संवाद में मदद करते हैं | स्मार्टफ़ोन या टेबलेट(आईपेड) पर एप्लीकेशन डाउनलोड किये जा सकते हैं या उन्हें सब्सक्राइब किया जा सकता हैं | इन एप्स के माध्यम से मरीज़ को समझने, समझाने, याद रखने, उच्चारण करने आदि में मदद मिलती हैं |

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