मैग्नेटिक रेजीनेंस इमेजिंग (MRI)अर्थात चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिम्ब्। इस हिंदी अनुवाद को हमें याद रखने की जरूरत नहीं है केवल यह बताने के लिए है कि हां, हिंदी में इसके लिए शब्द है। लेकिन चुकी अंग्रेजी में चलन का शब्द आ गया है, तो अंग्रेजी शब्द का उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है।
एम आर आई जांच के अंदर न केवल दिमाग वरन रीढ़ की हड्डी और शरीर के अन्य तमाम अंगो की जांच हो सकती है।
एम आर आई जांच में एक कमरे में एक बहुत बड़ा चुंबक होता है, बहुत शक्तिशाली चुंबक। इतना शक्तिशाली कि यदि आप उस कमरे में प्रवेश कर रहे हैं तो आपके शरीर पर या आप के बैग में कोई लोहे का पदार्थ नहीं होना चाहिए, कोई चाबी नहीं हो स्टील की अन्यथा, वह आपकी जेब से निकलकर, उछलकर उस चुंबक से चिपक जाएगा। जब उस कमरे में प्रवेश करते हैं तो बाहर चेतावनी हेतु बड़े-बड़े बोर्ड लगे रहते हैं। किसी प्रकार का कोई पदार्थ ना हो जो लोहे का बना होगा क्योंकि लोहा चुंबक के द्वारा खींचा जाता है।
इस चुंबक के भीतर एक सुरंग होती हैं, जो कि बहुत संकीर्ण होती है, उसमें लिटा देते हैं। कई मरीजों को तो उस में घुसते हुए डर लगता है, उसका दम घुटने लगता है। हालांकि मरीज को कुछ होता नहीं है, यह जांच दर्द रहित है। मरीज को किसी प्रकार की कोई पीड़ा नहीं होती। अंदर लेने के बाद जब मशीन चालू होती है, तो उसका शोर होता है धड़ धड़ धड़। कई प्रकार की आवाज आती है, उन आवाजों से कुछ मरीजों को अच्छा नहीं लगता, लेकिन शरीर में कोई दर्द नहीं होता। कुछ मरीजों को परेशानी होती है, दम घुटता हुआ सा लगता है, जैसे बंद कमरे में बैठने पर महसूस होता है। शोर के कारण भी कई लोग परेशान होते हैं अन्यथा किसी प्रकार का कोई नुकसान मरीज को नहीं होता है, कोई खतरा नहीं है, कोई रिस्क नहीं है। एम.आर.आई. की जांच इंजेक्शन के साथ और बिना इंजन के करते हैं। जो जांच बिना इंजेक्शन लगाए होती है वह प्लेन m.r.i. कहलाती है और जो जांच इंट्रावेनस इंजेक्शन लगाकर होती है, उसे कंट्रास्ट एम.आर.आई. कहते है। कंट्रास्ट इंजेक्शन लगाने के 2,000 से 2,500 अलग से खर्च होते हैं। मूल जांच के 4000 से ₹5000 लगते हैं। इस कंट्रास्ट इंजेक्शन को लगाना है या नहीं लगाना, यह निर्णय डॉक्टर के द्वारा, जो क्लीनिकल डॉक्टर है, जिसने मरीज को भेजा है और जो एक्सरे करने वाला डॉक्टर है, जिसने जांच की है, जो एम.आर.आई कर रहा है, दोनों के मिले-जुले विचार विमर्श के द्वारा तय किया जाता है। सब मरीजों को इंजेक्शन लगाकर एम.आर.आई. नहीं की जाती, उसके बिना ही काम चल जाता है। आदर्श स्थिति होगी, अगर हमारे पास संसाधनों की कोई कमी न हो तो हम चाहेंगे कि प्रत्येक मरीज एम. आर. आई. की जांच भी इंजेक्शन के द्वारा यानी इंजेक्शन लगाने के पहले और इंजेक्शन लगाने के बाद दोनों विधियों से होना चाहिए। इसमें खर्चा जरूर आता है और इंजेक्शन से कुछ मरीजों में रिएक्शन होने का खतरा भी रहता है, यदि पहले से खराब हो या पानी की कमी हो, अन्यथा एम. आर.आई. की जांच में मरीज सुरक्षित है। उसे पीड़ा नहीं होती और उसे कोई खतरा होता नहीं होता।
एम आर आई की जांच सीटी स्कैन के समान ही दिमाग के त्रिआयामी चित्र तैयार करती है। त्रिआयामी मतलब थ्री-डाइमेंशनल। तीनों प्लेन के चित्र हमें एम आर आई से प्राप्त होते हैं, जिसे टोमोग्राफी बोलते हैं। सीटी स्कैन में एक्स-रे किरणो का उपयोग होता था, जो 360-degree घूमकर शरीर के अंगों की परत दर परत चित्र प्राप्त करती थी। एम. आर. आई. जांच के अंदर किसी भी प्रकार की एक्स-रे किरणों का उपयोग नहीं होता। इसमें चुंबकीय तरंगे निकलती है। जब मरीज को चुंबक के बीच में लेटाते हैं तो ये चुंबक चालू नहीं रहती., बल्कि चालू बंद होती रहती है। उसके चुंबकत्व को मशीन द्वारा कम ज्यादा किया जा सकता है। हमारे शरीर का लगभग 70% वजन पानी का होता है। पानी की रासायनिक रचना है H2O हाइड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिल कर पानी का अणु बनाते हैं। हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में ढेर सारा पानी भरा है, हाईड्रोजन ऑक्साइड यह एक चुंबकीय पदार्थ है। जैसे लोहा चुंबकीय पदार्थ है, वैसे ही हाइड्रोजन चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील होता है। शरीर के पानी के अंदर जो हाइड्रोजन के परमाणु हैं, वे चुंबकीय क्षेत्र के साथ लयबद्ध हो जाते हैं, एलाइनमेंट में आ जाते हैं , पंक्ति बद्ध हो जाते हैं। आपने उत्तर और दक्षिण दिशा दिखाने वाली कंपास की सुई देखी होगी। जो लोग जियोग्राफी या भूगोल विषय पढ़ते हैं या उत्तरार्ध या दक्षिणार्ध की यात्राएं करते हैं। उनके हाथ में दिशा सूचक कंपास हुआ करता है और उस कम्पास में एक सुई होती है, जो हिलते रहती हैं और बताती है कि उत्तर दिशा किस ओर है। वह सुई धरती का जो चुंबकीय क्षेत्र है, उसके साथ लयबद्ध हो जाती है, उसके साथ अलाइन हो जाती है। उसी प्रकार जब एम आर आई मशीन में एक मरीज के शरीर को अंदर सुरंग मे घुसाया जाता है, उसके चारों तरफ जो चुंबक है, उसके चुम्बकीय क्षेत्र के साथ चुंबकीय पदार्थ पंक्तिबद्ध हो जाते है और फिर जब हम उस चुम्बक को ऑफ करते हैं तो वे परमाणु वापिस जैसे थे वैसे ही अपनी पुरानी अवस्था में आ जाते हैं। जैसे पुलिस वालों को परेड में कहते हैं – ‘सावधान और विश्राम’। उसी तरह चुंबक के ऑन ऑफ होने से हमारे शरीर के पानी में मौजूद हाइड्रोजन के परमाणु जब अपनी दिशा बदलते हैं, थोड़ा सा घूम जाते हैं, उस दिशा बदलने से बहुत ही महीन रेडियो फ्रीक्वेंसी तरंगे निकलती है, बहुत बारीक्। ये तरंगे बाहर स्थित रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल को कैच करने वाले डिटेक्टर द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। जैसे कि हमारा रेडियो एफएम बैंड होता है। उसके सिग्नल को हमारा छोटा सा मोबाइल भी कर लेता है, उसी प्रकार चुम्बक के कारण हमारे शरीर से जो रेडियो फ्रिकवेंसी तरंगे निकल रही है, उनको ये डिटेक्टर कैच कर लेते है। जो तरंगे निकलती है, उनकी उर्जा, उनकी दिशा, उनका गुण, यह बताता है कि अंदर क्या था। जिस रचना में से यह तरंगे निकल रही है, वहां अंदर कितना पानी था ,कितना रक्त था, कितनी हड्डियां थी, कैसा ट्यूमर था, कितनी सूजन थी। ये तमाम चीजें रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल, जो ब्रेन में से निकल रहे हैं, वो डिटेक्टर्स के द्वारा कैच कर ली जाती है, कैप्चर कर ली जाती है। कंप्यूटर अपने सॉफ्टवेयर के द्वारा सूचनाओं को प्राप्त करके एक चित्र गढित करता है, जो हमें सामने दिखाई देता है यह हमारे फला फला अंग का चित्र है। एक्स-रे किरणों के साथ जो निहित साइड इफेक्ट है, कोई सा भी एक्स-रे कराएंगे, उसमें थोड़े बहुत साइड इफेक्ट हो सकते हैं। वो साइड इफेक्ट, दुष्प्रभाव एम. आर. आई. जांच में नहीं देखने को मिलते, लेकिन सीटी स्कैन जांच में दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं क्योंकि उसमें एक्स-रे किरणों का उपयोग होता है।
एम आर आई जांच में एक्स-रे किरणो का उपयोग नहीं होता, इसलिए यह जांच गर्भवती महिलाओं पर भी की जा सकती है। चुंबक का गर्भ में पल रहे शिशु पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। लेकिन सी.टी. स्कैन जरूर नुकसानदायक सिद्ध होता है क्योंकि इसमें एक्स-रे उपयोग होता है।
एम आर आई जांच के द्वारा मस्तिष्क के भीतर की ओर रीड की हड्डी के भीतर की रचना का अत्यंत विस्तृत तीन आयामी चित्र हमें प्राप्त होता है, वैसे ही जैसा हमें सिटी स्कैन से प्राप्त होता था, लेकिन सीटी स्कैन की तुलना में एम.आर.आई. के चित्र अधिक विस्तृत होते हैं, ज्यादा बारीकी लिए होते हैं, और ज्यादा प्रकार की विकृतियां या पैथोलॉजी अपने अलग-अलग रूपों में अधिक साफ दिखाई देती है। और जो भेद करना है कि यह
बीमारी है, या वह बीमारी है, सीटी स्कैन की तुलना में एम. आर.आई में अच्छे से हो पाता है। एम. आर. आई. जांच का आविष्कार सीटी स्कैन के लगभग 10 वर्ष बाद हुआ था। इस जांच ने न्यूरोलॉजी निदान में, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के उपचार में दूसरी क्रांति पैदा की और निरंतर विकसित होती चली जा रही है। सीटी स्कैन और एमआरआई दोनों निरंतर विकसित होते जा रहे हैं।