मैं पक्षाघात का मरीज़ रहा हूँ। ४६ वर्ष की आयु में मुझे घातक पक्षाघात हुआ था। यह लेख मेरी पत्नी और प्यारे बच्चों को समर्पित है। उन्होंने पर्याप्त देखभाल करते हुए यह जता दिया कि हम आपको प्यार करते हैं और मेरे भूल करने पर भी उन्होंने दयालुता से देखभाल की ।
एक सामान्य व्यक्ति के रूप में पक्षाघात के मरीज के रूप में जो देखभाल और उपचार हुआ उसे लिखने की प्रेरणा इस वाक्य से मिली कि “‘पूछो उनसे जो स्वयं भुक्तभोगी हों” । मैंने अपने अनुभवके द्वारा जो ज्ञान प्राप्त किया उसे बॉटना चाहता हूँ , ताकि मेरी ही तरह अन्य मरीजों, उनके परिवारों और मित्रों को कुछ लाभ प्राप्त हो सके | यह वह लंबा और दर्दमय वापसी का रास्ता है, जो पक्षाघात के बाद नियंत्रण खोने से लेकर चिकित्सीय परिस्थितियों से गुजरने के पश्चात् अपनी मुख्यधारा पर आता है।
विषय की गंभीरता के कारण “व्यंग्य वाले’ संदर्भों को केवल कठोर या चुप्पा और डरपोक पारिवारिक सदस्यों या मित्रों को शांत करने के प्रयास के रूप में स्वीकार करना चाहिये | हँसी या साधारण मुस्कुराहट की शांत क्वालिटी की उपचार शक्ति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
पक्षाघात ने मेरे पावर कंपनी के साथ ३० वर्षीय करियर का आकस्मिक अंत कर दिया, किंतु मैं अपने पारिवारिक इतिहास को देखते हुए अपने आपको खुशनसीब मानता हूँ। क्योंकि मैं प्रारंभिक आघातों के बाद संघर्ष कर पाया और उसकी भावनाओं को कम किया | मेरे माता-पिता और मेरे दादा-दादी पक्षाघात से पराजित हो गये थे । मैं जीवित रहा ।
उपयोगी, प्रसन्नचित्त जीवन और पुन: नियंत्रण प्राप्त करना पक्षाघात के मरीज का उदेश्य होना चाहिये। क्योंकि हम संघर्षकर्ता हैं और प्रत्येक दिन नया होना चाहिये ।
पक्षाघात मरीजों के सम्मुख सामान्य चुनौतियाँ –
संवाद में कमी: प्रतिदिन के जीवन में आवश्यक संवाद की कमी अकल्पनीय है। समर्पित और योग्य चिकित्सक की सहायता के साथ भी मैं छ.सप्ताह तक कुछ भी बोलन पाया इस दौरान मैंने अपनी आवश्यकताओं और जरूरतों को मैजिक स्लेट के माध्यम से व्यक्त किया | यह बच्चों का खिलौना ही मेरा एकमात्र संचार साधन था। अंतिम आवाज लौटना अभिघातज और विकट था। मैंने चिकित्सक की मेज से कुछ सामान गिरा दिया था और उसकी परवाह किये बगैर चार शब्द जोर से लापरवाही उजागर करने वाले कहे | आवाज के अचानक वापस आजाने की क्षमता से प्रश्नों की बौछार आ गई | पहला प्रश्न स्वाभाविक था कि ‘मैं ही क्यों ?
भोजन के समय: भोजन करना बचपन में ही सीखा जाता है, परंतु पक्षाघात के पश्चात् यह योग्यता फूहड़तावाली और चिड़चिड़ाहट भरी हो जाती है। खाने की थाली और भरे हुए गिलास को नए अशक््त मरीज द्वारा पकड़ना मुश्किल हो जाता है। ऐसे कई विशेष डिजाइन की गई वस्तुएँ होती हैं, जैसे – रॉकर चाकू आदि जिनकी सहायता से प्लेट और बरतन आदि को पकड़कर थोड़ी आत्मनिर्भरता प्राप्तकी जा सकती है | प्राय: पीड़ित तरफ संवेदन जड़वत् हो जाता है, अत: ग्रेवी,ड्रेसिंग आदि से पक्षाघातग्रस्त अपरिचित रहता है , मुँह के कोने पर अनुभव नहीं होता। सम्मुख उपस्थित व्यक्ति इस बात को जानकर उस हिस्से या क्षेत्र को ध्यान में रखकर मरीज को चेता सकता है और नेपकिन का प्रयोग करवा सकता है। यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब संवेदन कम रहता है, तो खाना कितना गर्म है, यह ज्ञात रहे । इस वक्त थोड़ी सावधानी रखना पड़ती है। यदि दृष्टि संतुलित नहीं है, तब मरीज को देखने हेतु अतिरिक्त प्रयास करना पड़ सकते हैं ।
स्नान या शौच के समय: पक्षाघात के मरीज के लिये यह स्थिति अत्यंत कष्टप्रद रहती है, जब इसका प्रभाव मूत्रत्याग या मलत्याग पर पड़ता है। चिकित्सक या नर्सो द्वारा विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है | ब्लेडर या कोलन द्वारा जो संकेत मस्तिष्क को पहुँचाए जाते हैं, वे मिश्रित हो जाते हैं, या गलती होने से अशक्त व्यक्ति के शौचालय तक जाने में देरी हो जाती है। सामान्यतः हमारे नियत-कार्यक्रम के अनुसार शरीर की क्रियाविधि सामान्य निष्कासन से ४५ मिनट पूर्व रहती है । अत: सामान्य तरीके से क्रिया संपन्न की जा सकती है। यदि परिवहन या यात्रा करना हो तो सावधानी रखना आवश्यक हो जाता है । यदि मरीज अधिक अशक्त है तो सफर के दौरान अतिरिक्त वस्त्रादि सामग्री रखना लाभकारी होता है |
यात्रा: प्राकृतिक सौंदर्य से स्वास्थ पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है । मरीज को केवल परिवार एवं मित्रों के बीच ही सिमटकर नहीं रह जाना चाहिये | वर्तमान समय में ऐसी बहुत सी होटले हैं, जिनमें विशेष रूप से विकलांगों के लिये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं | ऐसी जगहों पर भू-तल को चुना जा सकता है | पक्षाघात का मरीज ज्यादा ठंड एवं गर्मी के प्रति संवेदनशील होता है। अत: ऐसे वस्त्रों की व्यवस्था यात्रा में करना आवश्यक है। वस्त्र आरामदायक होना चाहिये। पक्षाघात के मरीज की अवस्था अनुसार ही यात्रा के तरीकों का चयन किया जा सकता है।
भावनाएँ: पक्षाघात के मरीज का अनुभव उसे थोड़ा चिड़चिड़ा बना देता है, झुंअलाहट आ जाती है। अत: भावनाओं को परिवर्तित करते रहना आवश्यक है। आजकल कई ऐसे केंद्र हैं जो विभिन्न चिकित्सा कार्यक्रम संचालित करते हैं | अभी हमारे देश में पक्षाघात क्लबयया पुनर्वास समूह कम हैं | अपने अनुभव को दूसरों में बाँटना, जो कि भावनाओं को समझ सकें, और मनोरंजक गतिविधियों में हिस्सा लेने से पीड़ित व्यक्ति अपने सक्रिय जीवन में शीघ्र लौटता है |
कार्य: जब पक्षाघात के कारण मेरा पुराना कार्य बंद हो गया तो मैंने नया कार्य ढूँढ लिया | मैंने अपनी रूचि को तलाशा और अपनी पाककला को फिर आगे बढाया | समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में यही मूलभूत आवश्यकता है | थोड़े से धीरज, बौद्धिक क्षमता और व्यावसायिक सलाह से कोई भी पक्षाघात का मरीज अकेलेपन और अँधेरे कमरे से निकलकर समुदाय और घर में एक उपयोगी और संतोषी सदस्य बन सकता है।मैंनेघर के भोजन,लाँड्री,खरीददारी और योजनाओं को व्यवस्थित करना आदि कार्य संभाल लिये थे । एक हाथ की सीमा को ध्यान में रखते हुए मैं कार्य में परिवर्तन करता रहता था ।
रसोई में कुछ निम्नांकित बिंदु सहायक सिद्ध होते हैं
*भोजन के पैकेट खोलने में कैंची उपयोगी होती है।
*उभरी हुई दीवार डिब्बों को खोलने में सहायक हो सकती हैं ।
*गरम एवं पैनी सतहों को ध्यान से देखना चाहिये |
*डिब्बे या पीपे से उसका ढक्कन निकालने के लिये उसे दोनों पैरों के बीच दबाकर,थोड़ा झुककर प्रयास किया जा सकता है।
*आलू छीलने के लिये उसे कटाई वाली मोम के कागज से ढँकी सतह पर रखकर आधा काट लेते हैं और कटी सतह को नीचे रख उसके छोटे टुकड़े कर लेते हैं ।
*गाजर,आलू और प्याज को काटकर व पकाकर मैं पसंदीय डिश तैयार करता था।